Kittur Rani Chennamma in Hindi | कित्तूर की महारानी

Kittur Rani Chennamma in Hindi | कित्तूर की महारानी


Kittur Rani Chennamma in Hindi

Kittur Rani Chennamma in Hindi – भारत के इतिहास में अंग्रेजो के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में पुरुषो के योगदान के साथ साथ कई महिलाओं का बराबर योगदान रहा है। अगर आप इतिहास में दिलचस्पी रखते है, तो आपने रानी चेन्नम्मा का नाम तो जरूर सुना होगा, और क्यों नहीं, आखिरकार उन्हें कित्तूर की रानी के रूप में जो जाना जाता है। तो आईये अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने वाली रानी चेन्नम्मा के जीवन को विस्तार के जानते है।

Who is Rani Chennamma of Kittur? | कित्तूर की रानी चेन्नम्मा कौन है?

कित्तूर चेन्नम्मा जिन्हे रानी चेन्नम्मा के नाम से भी जाना जाता है। यह कित्तूर की भारतीय रानी थीं, जिनका जन्म 23 अक्टूबर 1778 को काकती, बेलगावी जिला, (वर्तमान कर्नाटक) में हुआ। रानी चेन्नम्मा ने साल 1825 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ, पैरामाउंटसी की अवज्ञा में, एक सशस्त्र प्रतिरोध का नेतृत्व किया। यही नहीं वह पहली भारतीय शासक थीं, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध विद्रोह किया, और रानी लक्ष्मीबाई से पहले रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सेना का विरोध किया, इसलिए उनको ‘कर्नाटक की लक्ष्मीबाई‘ भी कहा जाता है।

about (Kittur) Rani Chennamma in Hindi

नाम रानी चेन्नम्मा
अन्य नामकित्तूर चेन्नम्मा, कित्तूर की रानी
प्रसिद्ध ‘कर्नाटक की लक्ष्मीबाई’
जन्म23 अक्टूबर 1778
जन्मस्थानकाकती, बेलगावी जिला, (वर्तमान कर्नाटक)
कार्य1825 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह
माता पिताज्ञात नहीं
पतिराजा मल्लसर्जा
मृत्यु21 फरवरी 1829
मृत्युस्थानबैलहोंगल, बॉम्बे प्रेसीडेंसी
राष्ट्रीयताभारतीय
Kittur Rani Chennamma in Hindi

Rani Chennamma story in Hindi | रानी चेन्नम्मा की कहानी

यहाँ से हम आपको रानी चेन्नम्मा की पूरी कहानी बताएँगे। रानी चेन्नम्मा कर्नाटक कित्तूर राज्य की रानी थी, उनका जन्म 1778 को कर्नाटक के किन्नूर गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम धूलप्पा देसाई माता का नाम पद्मावती था.चेन्नम्मा के पिता एक बड़े सरदार थे, उन्होंने चेनम्मा को अलग-अलग युद्ध कौशल में पारंगत किया था, चेन्नम्मा घुड़सवारी तलवारबाजी और तीरंदाजी में विशेष रुचि रखती थी। युद्ध कौशल के साथ उन्हें रामायण, महाभारत, विष्णु पुराण आदि कहानियां सुना कर उस पर उनके पिता ने अच्छे संस्कार दिए थे।

जानिए रानी लक्ष्मीबाई के बारे में, जिन्हे झाँसी की रानी भी कहा जाता है।

रानी चेन्नम्मा का विवाह

एक दिन कित्तूर का राजा मल्लासारजा, टीपू सुल्तान की कैद से छूटकर राजा धूअप्पा से राजनीतिक बातचीत करने के लिए आया तभी उसकी रानी चेन्नम्मा की मुलाकात हो गई, मल्लासारजा राजा के सामने उसके और रानी चेन्नम्मा के विवाह का प्रस्ताव रखा, चेन्नम्मा के पिता इस बात से राजी हो गए, चेन्नम्मा का विवाह राजा मल्लासारजा के साथ संपन्न हो गया, रानी चेन्नम्मा कित्तूर की रानी बन गई कित्तूर का राजा जितना गुण संपन्न था।

मल्लासारजा एक साहसी और अलग-अलग कला में रुचि रखने वाला राजा था उसने बगीचे रास्ते तालाब और नहर की सुविधा और अलग-अलग कलाओं को बढ़ावा देखकर अपने संस्थान को समृद्ध किया था। उसे हमेशा अपने शत्रु के खिलाफ लड़ना पड़ता था, एक दो बार इसे दूसरे राज्यों ने बंदी बनाया था, बाजीराव पेशवा ने भी कैद कर मल्लासारजा को कैदी बनाया था.

1809 में रानी चेन्नम्मा के पति मल्लासारजा ने पौने दो लाख की फिरौती बाजीराव को दी थी, इससे खुश होकर बाजीराव ने मल्लासारजा को रिहा कर दिया, सन 1818 में बाजीराव पेशवा और अंग्रेजों के बीच जो युद्ध हुआ, इस युद्ध में कित्तूर के राजा ने अंग्रेजों का पक्ष लिया, इससे खुश होकर अंग्रेजों ने कित्तूर राज्य को स्वतंत्र किया और मल्लासारजा के पुत्र को “देसाई ऑफ कित्तूर” पदवी से सम्मानित किया।

Rani Chennamma history in Hindi | रानी चेन्नम्मा का इतिहास

कित्तूर का किला जीतने के लिए हैदर अली, परशुराम भाई पटवर्धन, टीपू सुल्तान, ढूंढा बाग और अंग्रेजों ने कई प्रयास किए लेकिन 1824 में सिर्फ अंग्रेजों के अलावा किसी को भी सफलता प्राप्त नहीं हुई |अंग्रेजों ने किला तो जीत लिया लेकिन उन्हें उसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ा, क्योकि एक सुर भारतीय नारी अपूर्व धैर्य ,संघर्षा चातुर्य के साथ आखरी दम तक अंग्रेजों के साथ लड़ती रही , मानवीय प्रयास खत्म होकर जब किस्मत ने भी उसका साथ छोड़ दिया तब उस तेजस्वी महिला ने हार मान ली, अंग्रेजो के खिलाफ रानी चेन्नम्मा ने जो संग्राम किया उसी, संग्राम कि यह हकीकत है|

तो चलिए बढ़ते हैं, इस संग्राम की पार्श्वभूमी की तरफ, कित्तूर का राजा मल्लासारजा की दो रानियां थी, बड़ी रानी का नाम रुद्रमा और छोटी रानी का नाम चिन्नम्मा था, टीपू सुल्तान ने राजा मल्लासारजा को कैदी बनाकर कैद में रखा था, तब रानी रूद्रमा ने मराठों की मदद ली और राजा को टीपू की कैद से आजाद किया। रुद्रमा का एक बेटा था, जिसका नाम था रूद्र शारजा, रानी चेन्नम्मा को भी एक पुत्र था, परंतु बचपन में उसका निधन हो गया था, राजा मल्लासारजा का 1816 में निधन हुआ, उसके बाद रुद्रमा का पुत्र उस गद्दी पर विराजमान हो गया, अंग्रेजों ने पेशवाई खत्म की, उसमें रूद्र शारजा ने अंग्रेजों की मदद की, अंग्रेजों ने इस बात से खुश होकर कित्तूर को स्वतंत्र राज्य घोषित किया, लेकिन अंग्रेजों ने कित्तूर के साथ एक करार किया, यह करार मन्नू एग्रीमेंट के नाम से जाना जाता हैl

kittur rani chennamma information in hindi

इस एग्रीमेंट के तहत उन्हें पौने दो लाख की फिरौती अंग्रेजों को देनी थी, रूद्र शारजा हर साल पौने दो लाख की फिरौती अंग्रेजों को देता था, परंतु बाद में उसने यह फिरौती देना बंद कर दिया, इस वजह से अंग्रेज कित्तूर का द्वेष करने लगे। राजा रुद्र शारजा के कोई पुत्र नहीं था, 10 सितंबर 1824 को उन्होंने एक संतान को गोद लिया लेकिन उसके अगले ही दिन राजा की मृत्यु हो गई!

अंग्रेजों को जब यह बात पता चली तो उनका मन चालाकी से भर गया, रूद्र सरजा अपने पुत्र के बारे में अंग्रेजों को कुछ पता नहीं चलने दिया था, इसी वजह से अंग्रेजों ने उसके पुत्र को उस राज्य को सौंपने की अनुमति नहीं दी अंग्रेज की इस बात से वहां की प्रजा बहुत नाखुश हो गई अंग्रेजों को जब कित्तूर में फैले इस असंतोष के बारे में पता चला तब उन्होंने रानी चेन्नम्मा के साथ बातचीत करने का फैसला लिया और वह रानी चेन्नम्मा से बातचीत करने के लिए कित्तूर आए लेकिन रानी चेन्नम्मा ने उसके साथ बातचीत करने से इंकार कर दिया, उस वक्त कित्तूर जिले में 15 लाख का खजाना मौजूद था और अंग्रेजों की उसी पर नजर थी।

Rani Chennamma (kittur) biography in Hindi

14 सितंबर को ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी ने रानी चेन्नम्मा को एक पत्र लिखा, जिसमें कित्तूर पर अंग्रेज सरकार की हुकूमत के आदेश थे, लेकिन चेन्नम्मा ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और प्रस्ताव ठुकराते ही, ब्रिटिश सेना ने कित्तूर पर आक्रमण करने के लिए कहा, रानी चेन्नम्मा को आत्मसमर्पण के लिए 1 घंटे की मोहलत दिया गया. एक घंटा खत्म होते ही कैप्टन ब्लैक के सभी सैनिकों ने कित्तूर के किले को चारों तरफ से घेर लिया कैप्टन ब्लैक ने सबसे पहले किले के मुख्य द्वार पर तोपों की बौछार कर दी और उसको तोड़ दिया l

रानी चेन्नम्मा की सेना का नेतृत्व गुरु सिद्धप्पा कर रहा था, रानी चेन्नम्मा खुद किले के तट पर खड़ी होकर अपने सैनिकों को प्रोत्साहन दे रही थी द्वार टूटने से अंग्रेजों की सेना किले के अंदर आ गए लेकिन रानी चेन्नम्मा की सेना भी चौकड़ी थी उन्होंने भी अपनी पूरी ताकत के साथ अंग्रेजों की सेना पर हमला किया, चेन्नम्मा के सेनापति गुरु सिद्धप्पा ने पहली ही मुठभेड़ में कैप्टन ब्लैक और उसके साथी को पछाड़ दिया, उसका लेफ्टिनेंट भी जख्मी हो गया।

दो-तीन सेनापति मारे जाने के बाद अंग्रेज डर गए, किले से बाहर भागने लगे, बाहर भागते अंग्रेजों को देख किले पर से बंदूक की गोलियां बरसने लगी, रानी चेन्नम्मा के अंगरक्षक सैयद आवसावा ने अंग्रेजो के मुख्य अदिकारी जिसने रानी चेन्नम्मा को पत्र लिखा था, उसे गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। अंग्रेजों का गोला बारूद और शस्त्र रानी चेन्नम्मा के हाथ लग गए और उसकी ताकत और बढ़ गई अंग्रेज सेनापति स्टीवन सन एंड एलियट को रानी चन्नम्मा के सामने लाया गया रानी चेन्नम्मा ने उन्हें सम्मान के साथ कैद में रखा !

आखिर तक डटी रही रानी चेन्नम्मा

कित्तूर जैसे छोटे राज्य से हार मिलने के कारण अंग्रेज क्रोधित हो गए बेलगांव ,मैसूर ,मुंबई चेन्नई इन जगहों की फौज इकट्ठा कर कर 20 नवंबर 1824 को कित्तूर पर आक्रमण कर दिया, अंग्रेजों की फौज की तुलना में रानी चेन्नम्मा की फौज बहुत कम थी, रानी चेन्नम्मा के सैनिकों ने साहस और पराकाष्ठा के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया लेकिन अंग्रेजों की सेना रानी की सेना से 4 गुना ज्यादा थी|

3 दिसंबर को अंग्रेजों ने ऐसा जोरदार हमला किया कि पूरा किला उनके कब्जे में कर लिया। अंग्रेजों ने रानी चेन्नम्मा के सैनिकों का खुलेआम कत्ल करना शुरू किया और सेनापति गुरु सिद्धप्पा को कैद करके फांसी दी गई। रानी चेन्नम्मा को भी कैदी बनाकर उसे बैलहोंगल किले में कैदी बना लिया गया, इस किले से रानी चेन्नम्मा ने दो बार भागने का प्रयास भी किया लेकिन उनका प्रयास असफल रहा!

21 फरवरी 1829 को उनका निधन हुआ कित्तूर में इनकी समाधि है, उन्हें बेंगलुरु राष्ट्रीय मार्ग पर बेलगांव के पास कित्तूर का राज महल तथा अन्य राज्य इमारतें इस वीरांगना के साहस को आज भी दर्शाती है। और रानी चेन्नम्मा के गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है!!

पूछे जाने वाले प्रश्न

रानी चेन्नम्मा का जन्म कहाँ हुआ था?

काकती, बेलगावी जिला, (वर्तमान कर्नाटक)

रानी चेन्नम्मा का असली नाम क्या है?

इनका असली नाम रानी चेन्नम्मा ही है।

राजा मल्लसर्ज की धर्मपत्नी कौन थी?

रानी चेन्नम्मा और रुद्रमा

रानी चेन्नम्मा की मृत्यु कब हुई थी?

21 फरवरी 1829 को।

रानी की मृत्यु के समय उनकी उम्र कितनी थी ?

50 वर्ष।

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नोट– यह संपूर्ण बायोग्राफी का क्रेडिट हम रानी चेन्नम्मा को देते हैं, क्योंकि ये पूरी जीवनी उन्हीं के जीवन पर आधारित है और उन्हीं के जीवन से ली गई है। उम्मीद करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। हमें कमेंट करके बताइयेगा कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा?

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